Most of the population should be stable

Editorial: सर्वाधिक जनसंख्या हो स्थिर, इसे गुणवत्तापूर्ण बनाना जरूरी

Edit

Most of the population should be stable

Most of the population should be stable: भारत के लिए यह सुखद और चिंताजनक दोनों बात है कि अब देश दुनिया में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन गया है। भारत की जनसंख्या 146.86 करोड़ के आंकड़े को पार कर चुकी है। अब चीन भी हमसे पीछे छूट चुका है। सर्वाधिक जनसंख्या के साथ भारत के सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का सपना साकार होता नजर आ रहा है। कहा जा रहा है कि भारत के 1.4 अरब नागरिकों को अब 1.4 अरब अवसरों के रूप में देखा जाना चाहिए। इस समय चीन 142.57 करोड़ आबादी के साथ दूसरे नंबर पर है और अमेरिका का स्थान तृतीय हो गया है। निश्चित रूप से ज्यादा आबादी का मतलब ज्यादा खपत और संसाधनों के ज्यादा प्रयोग से हो जाता है।

हालांकि वैश्विक आर्थिक ताकत बनने के लिए आबादी को आधार बनाकर चलना मुश्किल भी खड़ी कर रहा है। देश का भौगोलिक एरिया उतना ही है, लेकिन सडक़ें, अस्पताल, स्कूल, खेती की जमीन, पार्क, शहर, गांव-देहात की जमीन तंगहाल होती जा रही है। इस समय भारत और चीन के बीच आर्थिक मोर्चे पर मुकाबला जारी है, चीन ने तमाम साधनों से अपनी जनसंख्या को स्थिर कर लिया है। लेकिन भारत क्या यह कर पाएगा, यह सवाल सवाल प्रमुखता से सभी के समक्ष है। ज्यादा आबादी होना वरदान हो सकता है लेकिन जरूरत से ज्यादा आबादी होना अभिशाप भी बन सकता है।

 बताया गया है कि इस समय देश में औसत उम्र 28 वर्ष है, वहीं चीन की 38 साल है। देश की 66 प्रतिशत आबादी 35 साल से कम है यानी तमाम संसाधनों के उपयोग और उत्पादन के लिहाज से यह आंकड़ा देश की विकास रफ्तार के लिए सही है। यह भी कहा गया है कि घरेलू डिमांड यही वर्ग बढ़ाएगा, ऐसे में 2047 तक देश की जीडीपी 6 गुना बढक़र 27 लाख करोड़ तक पहुंच सकती है। वहीं प्रति व्यक्ति आय भी 12.3 लाख होने की उम्मीद है। ऐसी रिपोर्ट है कि देश में 6.6 करोड़ लोग मध्यमवर्ग में शामिल हैं। देश की अर्थव्यवस्था को सबसे ज्यादा यही वर्ग प्रभावित करता है।

ऐसे में कंज्यूमर गुड्स व सर्विसेज की डिमांड बढ़ाने में इनकी बड़ी भूमिका रहने वाली है। इसके बाद सर्वाधिक आबादी का एक अन्य फायदा यह गिनाया जा रहा है कि देश में 10 से 24 साल के आयु वर्ग के 37 करोड़ लोग हैं, जोकि अमेरिका की 34 करोड़ की कुल आबादी से भी ज्यादा हैं। अगले 10 वर्ष के अंदर यह आबादी 20-34 आयु वर्ग में पहुंच जाएगी यानी विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के बराबर डिमांड तो सिर्फ इनसे ही आ जाएगी।
   

हालांकि इन आंकड़ों पर खुशी मनाने के साथ ही यह भी विचार किया जाना चाहिए कि बढ़ती आबादी के सापेक्ष संसाधनों के वितरण की चुनौती को कैसे साधा जाएगा। हर व्यक्ति तक खाद्यान्न की उपलब्धता और बिजली-पानी, सडक़, अस्पताल, स्कूल, घर मुहैया कराना क्या संभव हो सकेगा। इस समय गांव-देहात के हाल ऐसे हैं कि बेरोजगारी का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। उच्च डिग्री हासिल करके भी युवा घरों में बैठे हैं, आखिर यह युवा किस प्रकार अर्थव्यवस्था में योगदान दे पाएगा। कृषि क्षेत्र में जोत कम होती जा रही है। यहां श्रम की संभावना कम होती जा रही है।

कृषि क्षेत्र में उच्च डिग्री हासिल करके कोई क्यों काम करने आएगा। अगर वह काम नहीं करेगा तो किस प्रकार खपत को बढ़ावा देगा। स्वास्थ्य क्षेत्र में भी बड़ी चुनौती है, अभी पर्याप्त अस्पताल नहीं हैं। दवाएं नहीं हैं और डॉक्टर भी नहीं है। अगर समय पर इलाज ही नहीं मिलेगा तो वह आबादी किस प्रकार स्वस्थ रहते हुए देश के संसाधनों को बढ़ाने में योगदान देगी। कुपोषण की समस्या देश के समक्ष है। उद्योग और अन्य कारोबार को बढ़ाने के लिए भी पूंजी चाहिए, जोकि कहां से आएगी। संभव है, इन्हीं बातों को देखते हुए चीन ने कहा है कि उसके पास 90 करोड़ कुशल कामगार हैं। चीन दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और विश्व के बाजार उसके सामान से अटे पड़े हैं।

भारत अपनी जनसंख्या को अगर सबसे ज्यादा होने पर खुश हो रहा है तो क्या वास्तव में उसके पास इतने कुशल कामगार हैं। चीन जैसे देशों में लोग सरकारी नौकरी करने के बजाय अपने रोजगार के जरिये ज्यादा कमाई करना पसंद करते हंैं। भारत में लोगों का इगो उनके रास्ते की अड़चन बनता है। यहां अगर कोई सरकारी क्षेत्र की नौकरी नहीं कर रहा है तो उसका जीवन निष्फल माना जाता है, क्या इस तरह की प्रवृत्ति के जरिये भारत विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक देश बन सकता है। अगर हम सिर्फ उपभोग के लिए इतनी बड़ी जनसंख्या होने का दंभ रहे हैं तो यह छलावा साबित हो सकता है, दरअसल देश को उत्पादक बनना होगा। यह कहना उचित ही है कि आबादी का लाभ संख्या पर नहीं, गुणवत्ता पर निर्भर करता है। भारत को अपनी आबादी को स्थिर करते हुए उसकी गुणवत्ता बढ़ाने पर काम करना होगा। 

यह भी पढ़ें:

Editorial: सेनाओं का बदलते परिदृश्य में और ज्यादा रणनीतिक होना जरूरी

यह भी पढ़ें:

Editorial: पंजाब में नशा तस्करी के खिलाफ सरकार की सख्ती सराहनीय